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Wednesday, 23 December 2015
काश ज़िंदगी भी
Tuesday, 22 December 2015
हिज़्र का शायद उसे मलाल भी नहीं
Monday, 14 December 2015
सुबह इस बात पे मैं बोला था
हुकूमतों की काला बाज़ारियों से
आम आदमी नंगा हो गया है
सुबह इस बात पे मैं बोला था
शाम को दंगा हो गया है।
इस बार के बज़ट में भी
सब कुछ ही महंगा हो गया है।
कौन जिम्मेबार जो देश का
कुछ हिस्सा भिखमंगा हो गया है।
छीननी होंगी अब इनसे हुकूमतें
के देश नंगा हो गया है।
शायर: आकाश
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