वो खुद को दरिया जान मेरी तलाश में निकला था
मुझ से जब मिला तो जाना, वो सिर्फ एक कतरा था
उसका गुमाँ मुझे जीतने का चुटकियों में, यूँ टूटा
एक ताज़ मेरे कदमों में जब देखा के बिखरा था
ये जो ग़मों -हिज़्र की बातें करता है, शायर है
जिसे तुमसे थी मोहब्बत, वो इक आम-सा लड़का था
मैं अपनी मर्ज़ी से हुआ था खर्च तुम पर
तुमने ना जाने क्या मेरे दोस्त मुझे समझा था
वो खुद को दरिया जान मेरी तलाश में निकला था
मुझ से जब मिला तो जाना, वो सिर्फ एक कतरा था
शायर: "आकाश"
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