ज़िंदगी फिर उम्र भर है रोती
अपने मन की जब नहीं होती
जिन आँखों में तू रहता हो
वो आँखें हैं कब सोतीं
आँखों की सिप्पियों में जो रखे थे
ग़ज़लों में पिरो दिए हैं सब मोती
दिल-ए-आशिक़ की भी तो पूछ कभी
क्यों कभी इसकी बात नहीं होती
क्यों बचपन ही अच्छा था ना
जवाँ हुए तो तुम गई दूर होती
शायर: "आकाश"
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