Friday, 27 November 2015

जिन आँखों में तू रहता हो










ज़िंदगी फिर उम्र भर है रोती 
अपने मन की जब नहीं होती 

जिन आँखों में तू रहता हो 
वो आँखें हैं कब सोतीं 

आँखों की सिप्पियों में जो रखे थे 
ग़ज़लों में पिरो दिए हैं सब मोती 

दिल-ए-आशिक़ की भी तो पूछ कभी 
क्यों कभी इसकी बात नहीं होती 

क्यों बचपन ही अच्छा था ना 
जवाँ हुए तो तुम गई दूर होती





शायर: "आकाश"

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