तुमसे बिछड़कर हमने खुद को कोसा बहुत है
ज़हन से तुम्हारा उतरना अब कहाँ रहा मुमकिन
तुम्हारे बारे में हमने सोचा बहुत है
अदालतें हैं उसकी इंसाफ क्या होंगें
हक़ में फिर भी हमने बोला बहुत है
दिल तो करे है छोड़ ही दे तुम्हें
हमने ही लेकिन इसे रोका बहुत है
ये अलग बात के उससे इकरार नहीं करते
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