कहें जिससे दास्ताँ कोई नहीं
अपना तो राज़दाँ कोई नहीं
ज़िंदगी ये कहाँ ले आई है
एहबाब भी यहाँ कोई नहीं
देख लिया भटककर हर जगह
मिला राहत का समां कोई नहीं
अब तो दिल भी यही चाहे है
रहें वहाँ हो जहाँ कोई नहीं
इस दुनिया से निपटने दे अभी
तुझे भी देख लेंगें आसमां कोई नहीं
शायर: "आकाश "
No comments:
Post a Comment