माँझी का प्यार लिए फिरते हैं
इन खुशदिल चेहरों में हम ही
हसरतें बीमार लिए फिरते हैं
जिससे बात करना भी गंवारा नहीं, उसी का
सिने में तलबगार लिए फिरते हैं
हमदर्दियां दिखाए भी तो कोई कहाँ तलक हम से
गम ही रायगाँ हज़ार लिए फिरते हैं
हिज़्र में बुदबुदाने लगे तो जाना, हम तो
खुद में फनकार लिए फिरते हैं
दर्दो-गम के सिवा क्या देंगें किसी को
यही तो बेशुमार लिए फिरते हैं
और तो सब जायज़ है लेकिन
दिल शर्मसार लिए फिरते हैं
शायर: आकाश
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