Saturday, 17 October 2015

ख़्वाब बन के रह गया वो











ख़्वाब बन के रह गया वो 
अज़ाब बन के रह गया वो 

लिखा जिसे मैंने हम-नफ़स मान के 
किताब बन के रह गया  वो 


बयाँ करना था जिसे दीवानापन मेरा 
नकाब बन के रह गया वो 

उससे बिछड़े इतने अब इतने दिन हुए 
हिसाब बन के रह गया वो 
शायर : "आकाश"
     





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