Thursday, 29 October 2015

इन काले गहरे अंधेरों में, मैं तुम्हें ढूंढा करता हूँ











हर कोई दिल में वो मुक़ाम नहीं पाया करता 
हर किसी को आने की मन इजाज़त नहीं दिया करता 
मैं भी चाहता तो हूँ किसी का अब होना लेकिन 
मुझे तुझ-सा और कहीं, कोई नहीं मिला करता 

मेरे पास तो ऐसा भी कोई अहबाब नहीं,
 जिससे कर सकूँ तेरी बात मैं 
ग़म फ़िराक़ का सताए तो, 
काट सकूँ वो शब किसी का पकड़ के हाथ मैं 

मेरी तो दास्ताँ ही इतनी,
के तुमसे मोहब्बत करता था, करता हूँ 
ख़्वाब वही तुम्हारे साथ जीने के,
मैं बुनता था, बुनता हूँ 

इन काले गहरे अंधेरों में, मैं तुम्हें ढूंढा करता हूँ 
इक बार तुमसे मिलने को, मैं बेतहाशा तड़फा करता हूँ 
,मैं आज भी नाम तुम्हारे ही, सब गीत लिखा करता हूँ 
सब गीतों में तुम्हें अपना, मैं मीत लिखा करता हूँ 





शायर: "आकाश"

No comments:

Post a Comment