डूब चुका अब तो मन प्रेम में
अब ये पथ छोड़ना आसान नहीं ।
अब तो चाहे-
जियूँ या मरुँ,
मुरझाऊँ या खिलूँ ,
जीतूँ या हारूँ,
दिलों के इस खेल में ।
अब ये पथ छोड़ना आसान नहीं ।।
जीवन चाहे कितना भी है
तुम बिन अधूरा तो है
वक्त जो कहीं नहीं ठहरता
मेरे दिल में ठहरा तो है
हिस्से में चाहतों का समंदर ना सही
यादों का सहरा तो है
हासिल चाहे कुछ भी ना हुआ हो
एहसास लेकिन गहरा तो है ॥
प्रेम की एक बूंद ही -
काफ़ी होती है जीने के लिए,
हर घाव को भरने के लिए,
दिलों के खिलने के लिए,
दुखों की तपती रेत में
अब ये पथ छोड़ना आसान नहीं ।।
चाहे कितना भी कहूँ संक्षेप में
अब ये पथ छोड़ना आसान नहीं ।।
शायर: "आकाश"
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